Tuesday, August 28, 2012

एक गुमनाम लेखक की डायरी-9

समय के कई हिस्से मेरे लिए तकलीफ देह हैं।  वे सपने जिसे शहर ने दिए, उनके कभी पूरे न होने का मलाल है। आज मिस्टी से बहुत दिन बाद बात हुई, वह बंगाली लड़की है जिससे मेरी मुलाकात याहू मैसेंजर पर हुई थी। तब मैं कविताओं से दूर लोक गीतों में भटक रहा था। मेरे लोक गीतों के दो अल्बम आ चुके थे। मेरे अंदर भी कहीं न कहीं मनोज तिवारी जैसा कुछ बनने का एक सपना जन्म ले चुका था। यह वह समय था जिस समय को बाद के दिनों में मैं कोमा का समय कहता हूं। 4 साल के लगभग मैंने एक भी कविता नहीं लिखी।  वे जो कारण थे उनको एक दिन फेसबुक में मैंने दोस्तों को शेयर किया था मैं चाहता हूं कि उसे आपसे भी शेयर करूं..। लेकिन बहुत  ढूंढ़ने के बाद भी वह नहीं मिलता। फिर कभी चर्चा होगी उसकी। बातों-बोतों में कई बातें निकल आती हैं। वह बात भी कभी न कभी निकल ही आएगी।

मिस्टी बहुत सुंदर नहीं होकर भी बहुत सुंदर है। वह कविता समझती है - पुस्तक मेले में जब हम दोनों बांग्ला की किताबें खरीद रहे थे तो ुसने कहा था - तुम्हारी कविता की किताब जब आएगी तो उसका बांग्ला अनुवाद मैं करूंगी। इसके बाद बहुत समय गुजर गया। हमारी बातें बंद हो गईं। और हमारे संबंधों के बीच कई एक बड़ी दिवारें खड़ी हो गईं जो उसके मेरे वसूलों की थीं। इस देश में आज भी स्त्री-पुरूष का संबंध एक जगह पर आकर बेहद जटिल हो जाता है। कहना चाहिए कि वह जटिलताएं हमारे बीच भी आईं।

हटात मैंने एक दिन  मिस्टी को मोबाईल पर संदेश भेजा।  मेरी कविता का अनुवाद करोगी? उसने  हां कहा।  लेकिन उसने यह शर्त लगा दी कि वह कभी बात नहीं करेंगी। बिना बात किए कविता की कई जगहों पर विमर्श किए यह अनुवाद संभव नहीं था। मैंने कहा कि बिना बात किए यह संभव नहीं होगा। मैं फोन करता वह फोन पर कई-कई दिन मेरी बातें सुनती रही। कोई जवाब नहीं दिया। वह मोबाइल पर संदेश भेजती- कविता के बारे में पूछती तब मैं फोन कर उसे बता देता। लेकिन आज पहली बार वह बोली।

इतने दिन बाद जवाब देना,  उसकी अवाज सुनना, कानों को अच्छा लगा।
मैं देर तक उसको कुछ कविताओं के अर्थ समझाता रहा। 
उस लड़की को लेकर मेरे मन में एक अपराध बोध भी है। मुझे कई-कई बार लगता है कि वह मुझे बेहद प्यार करती है, एक ऐसा प्यार जिसके बारे में मैंने शरत्चंद्र की कहानियों-उपन्यासों में पढ़ा है। उसकी नजर में मैं शरतचंद्र का चरित्रहीन हूं।
उसने आज कहा - मैं कभी तुमसे बात नहीं करती। तुमने पूछा न कि फिर अनुवाद क्यों कर रही हो। इसका उत्तर यह है कि मैंने वादा किया था कि तुम्हारी किताब का अनुवाद मैं करूंगी। तुम वादा कर के भूल गए। मैं वादा कर के कैसे भूलूं...।

उसकी बातें मुझे अंदर तक हिला गईं। मैं सोचने लगा क्या सचमुच मैंने मिस्टी के प्रति कोई अपराध किया है..। सोचता हूं तो सोचने का कोई छोर नहीं मिलता... अंतहीन है यह....।

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