Saturday, September 22, 2012

एक गुमनाम लेखक की डायरी -23

उसने कहा - तुम बुद्धु हो।
मैंने कहा - मैं बुद्धु हूं। मुझे शातिर नहीं बनना।
इसलिए ही तुम अच्छे लगते हो - उसने कहा।
अच्छा लगता हूं, बुद्धु लोग सबको अच्छे लगते हैं,  लेकिन कोई प्यार नहीं करता- मैंने कहा।

वो तो इसलिए प्यार नहीं करता कि तुम कविताओं से प्यार करते हो - उसने कहा।

ठीक है लौटता हूं मैं अपनी कविताओं के पास तब - मैंने कहा।

और चुपचाप लौट आया...।

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